काहे करी प्रभु! बेर मिलनको? तडपत हे जिया प्राण हमारे

(तर्ज: वेष्णब जन-तो तेणे कहिये...)

काहे करी प्रभु! बेर मिलनको? तडपत हे जिया प्राण हमारे ।
बिन पानी मछली दुख पावे, वही गति होवत वक्त उबारे ।। टेक ।।
जिम चातक बादलबिन तडपे, भटकत चहूँ दिस और किनारे ।
जिम बिया गैयाबिन ऊँधे, भटक भटक बनमें.सिंग मारे ।।१।।
जिम मृग जलबिन उडे भूमिपर, मृगजल-आस प्यास धर हारे ।
तुकड्यादास प्रभू-दरसन बिन, भाग न जगमें खुलत हमारे ।।२।।