काहेको गात, जब नजर है बुरी ?

(राग: बागेश्री ; ताल:तिनताल. . )
काहेको गात, जब नजर है  बुरी ?
अपने   घरमें   ही   गिरिधारी !  ।।टेक |।
मन मन्दर है, ज्ञान है पूजा ।
आतम - दर्शन  ही     बलिहारी! ।।1।।
तीरथ कर कर, मल-मल न्हाये।
दिल नहिं धोवे, तब को   तारी ? ।।2।।
जहाँ देखो वहाँ पत्थर-पानी।
बिन भक्ती, कहें कौन उध्दारी ? ।।3।।
तुकड्यादास कहे,  सुन साधो-
नियत साफ रक्खो अति प्यारी ! ।।4।।