कैसे हरि गाऊँ भाई ! कैसे हरि गाऊँ मै ?

           (तर्ज: दुनियाँ न भाये मो हे...)
कैसे हरि गाऊँ भाई ! कैसे हरी गाऊँ मैं ?
मनही न माने, क्या बताऊँ- क्या बताऊँ मैं ? ।।टेक।।
हाथ करताला, मेरे हाथ    में     तम्बोरा ।
गले में; है माला, माथे चन्दन का टीला ।।
देखनेको मूरत है, पर प्रेम कैसे लाऊँ मैं ?
मनहीं न  माने, क्या बताऊँ मैं ? 0।।1।।
सामने समाज मेरे, राजे - महाराज है।
बाग-बगीचा है सारा, चाहे जो भी साज है।।
हाथ जोड ठाडें है पर, मुँह क्या दिखाऊँ मैं !
मनहीं न माने, क्या  बताऊँ मैं ? 0।।2।।
लाज लगे जीनेकी; लाज खाने - पीनेकी।
बिना हरी-किरपा, लाज साजकी, समाजकी।।
बिना विषय त्यागे, कोऊँ औरको सुनाऊँ मैं ।
मनहीं न माने, क्या  बताऊँ मैं ? 0।।3।।
नाच-नाच दिन  खोये, रातदिन नैन रोये।
कहे दास तुकड्या,फिर भी शान्ति नहीं,दिलमें होये ।।
गुरु ग्यान पाये  बिनु तरूँ ना  तराऊँ में।
मनहीं न  माने, क्या  बताऊँ   मैं ? 0।।4।।