आजाद हुए फिरभी कुछ लाभ नहीं है

    (तर्ज: जाओ उन्हींकी शरण में. ...)
आजाद हुए फिरभी कुछ लाभ   नहीं   है ।
बिगडा है आज भारत, यह बात सही है ।।टेक।।
मनमाने मिले पैसे, सब की   बढी   चहा ।
इन्सानियतको खोया, इस लोभ से महा ।।
सत्ता पे चढ ॒ बसेंगे, यहि बात   रही   है  ।।१।।
होकर भी नाज घरमें   देते   नही   किसे ।
रखते चुरा-चुराकर, धमका जिसे - उसे ।।
है धुंद जन-जमाना, अच्छा  न  कहीं   है ।।२।।
बापूने कह दिया था- अब लोक- पक्ष लो ।
अच्छे हों उन्हें चुनलो, बैमान बिसरलो ।।
तबही भला   रहेगा - यह   वक्त  वही  है ।।३।।
गांधी थे  दूरदर्शी   मर्मज्ञ   बुध्दि   थी ।
जनता की कद्र की  थी,कर्म-शुध्दि थी ।।
तुकड्या कहे ऐ भारत,अब छोड दुई  है ।।४।।