आओ मेरे मित्रो ! तुम्हे गांधीने पुकारा
(तर्ज ; आजा मेरे बरबाद... )
आओ मेरे मित्रो ! तुम्हे गांधीने पुकारा ।
लेटे हुए जमुनासे देते हैं इशारा ।।टेक।।
आपसभें लडो मत,अरे हिंदू- मुसलमानों !
लडनेसे रहा कौन ? दोनोंका बुरा जानो ।
क्यों फिरसे बुलाते हो फिरंगीको दुबारा ?
लेटे हुए जमुनासे 0।।१।।
नेकीसे चलो तो, सभी दुनिया है तुम्हारी ।
मस्ती करोगे तो ना सम्हलेगी बिमारी ।।
बुरा नतीजा आयगा, कुछ मानो हमारा !
लेटे हुए जमुनासे 0।।२।।
अमिरोंने अपने देशको अब जान दे देना ।
गरिबोंने पिछेकी सभी बातें भुला देना ।।
बिगड़ी घड़ी है देशकी,मिलकर दो सहारा ।
लेटे हुए जमुनासे 0।।३।।
ऐ देशके बासिंदो ! प्रभुको ना भूलना ।
रक्षा करेगा वह,करो मिलकरके प्रार्थना ।
मानवधरमकी चालसे चल कर लो गुजारा ।
लेटे हुए जमनासे 0।।४।।
करता है जो मगरूरी, मैं देख रहा हूँ ।
अब तो खुदाकी ओरसे, मैं नेक रहा हूँ ।।
शेजूँगा में दूतोंको, देने कब्र- किनारा ।
लेटे हुए जमुनासे 0।।५।।
मेरी रही बातोंको, मेरे प्यारे ! निभाना ।
भारत मेरा आजाद और आबाद बनाना ।।
तुकड्या कहे, दरदरमें हो नारा यह हमारा ।
लेटे हुए जमुनासे 0।।६।।