आशक का घर यार देखो तो दूर है

       (तर्ज : तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ...)
      आशक का घर यार देखो तो दूर है ।
      पर सच में सोचो तो दिल में हुजूर है ।।टेक।।
हर काम में प्रेम लगता है उसको, उस प्रेमका नेम लगता है उसको ।
मैने   कहा   इसमें   चहिये  शहर   है ।।१।।
उसमें है अमृत -जहर मिलके दोनो, अपनी अकलसे ही उसको पछानो ।
जो    चाहो   मिलता  और  कसूर  है ।।२।।
किसने तो पाया है घरमें ही प्यारा, करता था खेती में धंधा बिचारा ।
किसने लगाया था भक्ति का  सूर  है ।।३।।
है अर्ज मेरी सुनो भाई-साथी, अकल से चलो तो मिले शेर-हाथी ।
कहे दास तुकड्या ये छोडो जरुर है ।।४।।