ऐ ग्रंथ-पंथवालों ! मेरा सुझाव है ये
तर्ज: जैसा किया हे तूने, वैसा तुझे...)
ऐ ग्रंथ-पंथवालों ! मेरा सुझाव है ये !
बदला हूआ जमाना, धरता न पाँव है ये ! ।।टेक।।
शान्ती नहीं है उसको, रॉकेट-बम्ब बनाकर ।
उडता ही जा रहा है, हिंसा की नाव है ये ।।१।।
कहिं भूमिकम्प होकर, मरते हैं प्राणि सारे ।
कइ बाढपीडितोंसे घेबडाये गाँव है ये ! ।।२।।
कालेबजार से भी, कट लाखे फाके होते ।
डरते नहीं हैं फिरभी,चोरोंके साँव हे ये ! ।।३।।
चारित्र्य भी गया है, जाता रहा है जो भी ।
जातीय वृत्ति को भी, बढके ही भाव है ये ।।४।।
गर इनसे बचना है तो,हो प्रार्थना प्रभूकी ।
तुकड्या कहे सुनोजी,शांती की छाँव है ये!।।५|।