कौन तरे भवपूर, शुर तरनेवाला न्यारा
भजन ३७
(तर्ज : पिया मिलन के काज.... )
।कौन तरे भवपूर, शुर तरनेवाला न्यारा
लाख हजारों में भी बिरला, कोइ रहे प्यारा ।।टेक।।
इस माया के घुंघट में, सब भजनपुजन हारा ।
पुरब जनम के सुकृत हों तब, खुले प्रेम-धारा ।।१।।
महान साधू जोगी जटाऊ, खींच पकड़ मारा |
कोइ न रह पाये मायामें, अनुभविकों तारा ।।२।।
छोड़ सभी जंजाल, जीवपर फिर पड़ता भारा।
कहता तुकड्या सद्गुरू को भज, होजा भवपारा ।।३।।