ऐ दुनियावालो ! जागो जरा

(तर्ज- दिलमें ही नहीं जब शान्ति...) 

ऐ दुनियावालो! जागो जरा, आपसमें भेद न कर पाओ।
इस गिरी हुई मानवता को अब तोभी सब मिल अपनाओ ।। टेक।।
मानवका गौरव जाति नहीं, धनद्रव्य नहीं अधिकार नहीं।
गौरव है त्याग, चरित्र, विनय और सेवा -सबको समझाओ ।। 1।।
जो निर्मल-सत्य अहिंसासे, होता है पावन साधन से।
वहि ऊँच उठेगा जीबनमें, उसहीके गुणगोरव गाओ।। 2।।
धनवान हुआ पर पाप करे, व्यभिचार करे व्यसनोंमे मरे।
अपमानित है उसका जीवन, यह निर्भय जाहिर कर जाओ।।3।।
तुलसी -तुकड्यासे भेट हुई,तब यहि चर्चा आखिर में रही।
हर मानव-प्रेम बढायेंगे, हमही गायें, तुमभी गाओ।।4॥