कौन विधी तेरे गुणको गाऊँ, राम-रहीमा

भजन ३९
(तर्ज : पिया मिलन के काज.... )

कौन विधी तेरे गुणको गाऊँ, राम-रहीमा रे।
कहता हूँ जो स्तुती तुम्हारी, सब संकट घेरे ।।टेक।।

बिना दरिद्री कौन तरा था? दीन सभी तारे।
संत तुकोबा प्रल्हादादिक,  संकटमें सारे ।।१।।

यह मन मेरों चंचल सुनकर, कड संकट वारे ।
जो तेरा हो वही तरा है, बिरथा सुधि हारे ।।२।।

कहता तुकड्या तूही तेरो, ऊपर -बिचमें रे ।
तूही गावत तूही दैवत, लीलामय प्यारे ! ।।३।।