क्यों नही मिलते मुझे अब, कृष्णजी जग-तारिया ?

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
क्यों नही मिलते मुझे अब, कृष्णजी जग-तारिया ? ।
केशि आदिक मारके निज द्रौपदी उद्दारिया ! ।।टेक।।
जय-विजय दो वृक्ष ठाडे, तारने उनको उखाडे ।
कंसमामा को पछाड़े,    कालिया   मर्दारिया ! ।।१।।
भक्त तेरा वह सुदामा, हर हमेशा जपत नामा ।
दे उसे कंचन को धामा, दुःख सुखभी वारिया ! ।।२।।
युध्द्सज्ज बनायके, निजदास अर्जुन न्यायके ।
रणमें गीता गायके, तुकड्या कहे मन धारिया ! ।।३।।