क्या द्वैत तनूबिच मेरे ?

(तर्ज : सखि पनिया भरन कैसे जाना...)
क्या द्वैत तनूबिच मेरे ? निजकर्म दिलावत फेरे ।।टेक।।
मद - लोभनसे सुन भाई ! तप-राज सुधी बिगडाई ।।
जमराज      वहींसे     घेरे । निजकर्म ०।।१।।
इक दुष्ट गड़ी मनु तेरा । सब धन करता वह न्यारा ।।
वही काल  धरे    परदे   रे । निजकर्म ०।।२।।
अपने में बहुपन जागे । वहि मात-गोत धरे आगे ।।
तनुधर्म     नचाते     सारे । निजकर्म ०।।३।।
नीचद्वार नाच नचावे । उसकेही पग पकड़ावे ।।
कहता तुकड़्या झकझोरे । निजकर्म ०।।४।।