कसम तेरी मौला ! तूही साथी मेरा

(तर्ज : जमाले नबी की है काली ... )
कसम तेरी मौला ! तूही साथी मेरा ।
झूठा है न कहना, गुनहगार तेरा ।।टेक।।
तेरे हुस्नका कौन जगमें मिलेगा ? ।
है मामूर मुखडा खलक-पार तेरा ।।१।।
यह बंदा न दूजा समझ यार ख्वाजा ।
न कोई सहारा, किसीका भी डेरा ।।२।।
किया है ये कुर्बान तन-मन कदमपे ।
नहीं सीस  मेरे    कोईभी   सहेरा ।।३।।
करो माफ खालिक ! दे दीदार अपना ।
कहे दास तुकड्या बदन तूने घेरा ।।४।।