ऐ कृष्ण ! तेरा नामही मुझको अधार है
(तर्ज : जमाले नबी की है काली ...)
ऐ कृष्ण ! तेरा नामही मुझको अधार है ।
जग-तारिया ! दयाल तू, महिमा अपार हैं ।।टेक।।
भव सिंधु या पडा पहाड़, राह ना रहे।
भजतेहि पार जाऊँ मै, पगका सहार है ।।१।।
गोते अजी ! खाता रहा, जब ना सुधार है ।
भक्ती करूँ अब कौनसी ? तुझबिन न सार है ।।२।।
मम काम-कल्पद्रूम तूही, हे श्रीमुरार ! है।
सबही जगहमें दिख रही तेरी बहार है ।।३।।
सुन, राखिए सदाके लिए दास-भार है ।
अब दासकेभी दासका तुकड्या निछार है ।।४।।