क्या भटक रहा बिरथा प्यारे ? ?
(तर्ज : हरिचरण बिना सुख नाही रे... )
क्या भटक रहा बिरथा प्यारे ? ?
अब छोड सभी हरिगुण गा रे ! ।।टेक।।
फिर फिर आया चौरासीमें ।
कर्म बिकट है दुःख इसीमें ।।
काल खडा गटके गा रे ! ।। क्या० ।।१।।
द्वैतहिसे मन दौर रहा सुन।
विषयविकारहि बढा रहे ऋण ।।
नामबिना दुख ना टारे ।। क्या० ।।२।।
मान कही यह सद्गुरुही धन ।
होत उसीसे अजर अमर तन ।।
भज उसके पगमें जा रे ! | क्या० ।।३।।
कहता तुकड्या पथ सुखदायी ।
चरण धरो तब दुख मिट जाई ।।
निजको भज होकर न्यारे ।। क्या० ।।४।।