क्यों फिरता नर ! बनमें भटकत ?

( तर्ज : दर्शन बिन जियरा तरसे रे !... )
क्यों फिरता नर ! बनमें भटकत ? ।।टेक।।
श्रीगुरु दे धुन मारगवाला । चलकर पूछ बंद है ताला ।
जप घट में निजनामकी माला, फेर नही दुख पाकर अटकत ।।१।।
अनहदकी धुन लागत प्यारी । सुनते काननकी सुधि हारी l
बाजत डंका अर्गन न्यारी, फिर भव से तू जा चल सटकत ।।२।।
नाभिकमलमों  विष्णुनिवासा । देख भला सुख होवत खासा ।
जिम निर्मल जल डोलत मासा, कालनके-मुख ना फिर खटकत ।।३।।
कहता तुकड्या समय चला है । जाय बखत नहि आय भला है ।
अब करले गुरुसेहि सला है, जन्ममरण में फिर ना लटकत ।।४।।