आशा है मेरी, अपनी दिवाली मनाऊँ ।। टेक ॥
तर्ज: पायोजी मैने रामरतन धन... )
आशा है मेरी, अपनी दिवाली मनाऊँ ।। टेक ॥
अपने मनको मनसे सजाकर, हरष हरष गुण गाऊँ।
काम क्रोध का कूडा-कचरा, ग्यानकी अगन जलाऊं ।।1।।
तम अज्ञान का सारुँ अंधेरा, प्रेमके दीप लगाऊँ।
निच -ऊँचता के फोडूं फटाके, सब मिल समता लाऊँ ।। 2 ॥
सब घर मेरे, मैं हूँ सबका, यही श्रृंगार चढाऊँ ।
तुकड्यादास दिवाली नहाऊँ, सतगुरु संग रंग जाऊँ ।। 3 ।।