ऊँचा मकान तेरा, कैसी मजल चढूँ मैं ?
(तर्ज : गजल ताल तीन) कक
ऊँचा मकान तेरा, कैसी मजल चढूँ मैं ? ।
आडी खड़ी है चौकी, किस शस्त्रसे लडूँ मैं ? ।।टेक।।
तपयोग भी न चलता, कुछ शाप दे हटाऊँ ।
नहिं आँखका गुजारा, छूपा कहाँ दडूँ मैं ? ।।१।।
नहीं बुद्धियोंकी सीमा, इतनी मजल कटावे ।
किसपर सवार होकर, आगे कदम बढ़ूँ मैं ?।।२।।
चारों तरफ बँधा है, कीला ऊँची जगहमें ।
नहीं पवन ताब मारे, ले वृत्तिको उडूँ मैं ।।३।।
पहुँचे हुए न आये, कुछ खब्रको सुनाने ।
तुकड्याको आस तेरी, हकमें रहा जड़ूँ मैं ।।४।।