कइ वारको सहन कर, तुझमें लगाही होगा
(तर्ज : गजल ताल तीन)
कइ वारको सहन कर, तुझमें लगाही होगा ।
आशक वही पुरा है, सोया जगाही होगा ।।टेक।।
अपमान - मान दोनों, जिसको खबर न आवे ।
ऐसेहि औलियोंका, ईश्वर सगाही होगा ।।१।।
नही ऊँच - नीच कोई, जिनकी नजरमें आवे ।
उन आशकोंसे माशुक, न जुदा निगाही होगा ।।२।।
जिसको पता नहीं है, तनके सहीत रूँहका ।
वहही बना बना है, हकमें रँगाही होगा ।।३।।
मरके मरा जिया है, सबके दिदार खातिर।
प्यारा वही हमारा, तुकड्याको ग्वाही होगा ।।४।।