ऐ मोहबतवाले लोगों !

(गजल - ताल तीन )
ऐ मोहबतवाले लोगों ! आँखी खोल तमाशा देखो ।।टेक।।
बापके पहले लडका आकर, खेल बनाया सारा ।
जब एक थूटा मृदंग बजावे, बाप करे परकारा ।।१।।
रोम बराबर जमिया उसमें, पर्वत ऐसी धारा ।
मुंगी कुंडिया लेकर ध्याती, भरा समुंदर   सारा ।।२।।
उस कुंडियामें मुरदा तीरे, नाचे हर परकारा ।
चूहेने जब फोडी कुंडिया, बरसे   मोती - धारा ।।३।।
उस मोतीको बिल्ली खाई, रंग दिखे खुब न्यारा।
कुत्ता तो खुब भूके दूरसे, लगा हुआ रंग   तोरा ।।४।।
जब मुंगसाने स्वाँस खँचीटा, खाया खेल पसारा ।
तुकड्यादास कहे यह स्वाँसा, सबमें सबसे न्यारा ।।५।।