आया हूँ तेरे दरपे, हमसे बोलता है क्या? ।
(तर्ज: महलों में रहनेवालों ... )
आया हूँ तेरे दरपे, हमसे बोलता है क्या? ।
पत्थर के भेषवाले, मुंह खोलता है क्या ? ॥टेक।।
कितने भी हमसे कह गये,तूने तो बात की।
अपनी सूरत दिखाके, मोहब्बत खैरात की।
मेरे भी आँखमें वों, तेज तोलता है क्या ? ।।1।।
छीपा है हीं मन्दर मसजीद बनाके ।
बाहर छिपा है फूल और साज सजा के ।
सच्चा प्रेम करने तू डोलता है क्या ? ।।2॥
दुनिया में तेरा रोशन छीपा न कही है।
दिखता जहाँ भी देखे तूही तू सही है ।
तुकड्या कहे तू छिपके ढंढोलता है कया ?।।