आओ आओ श्याम बिहारी । दर्शनकी मेरी आँख निहारे ।।टेक ॥
(तर्ज: रघुपती राघव गजरी, अवघी.... )
आओ आओ श्याम बिहारी । दर्शनकी मेरी आँख निहारे ।।टेक ॥
कुंजनबनकी हवा जीवनकी । देख रहा हूँ मैं पल-छिनकी।
पर ना शांति हुई है मनकी । बिन देखे सुख कहाँ तुम्हारे।।1॥
वही है गैया, वही है भेया। वही है गोपी वही रवैया।
पर तुम नाहिं तब हो कैसें? चंद्र बिना जैसे कुछ तारे।।2।।
श्याम छबी जब श्याम घटासे । श्याम समयकी श्याम छटासे |
कहे तुकड्या फिर श्याम हृदय हो। तर जाये ये तनमन सारा ।।3॥