कठिन बैरागका धरना
(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ...)
कठिन बैरागका धरना, कहाँ हमसे रिझावेगा ? ।।टेक।।
बिकट यह-मान अपमाना, भरा भरपूर इस तनमें ।
छोडकर कामकी आशा, कहाँ हमसे रहावेगा ? ।।१।।
विषयकी खास लालचमें, फँसा यह जीव घनघोरा ।
तोडकर विषयकी आशा, कहाँ हमसे बसावेगा ?।।२।।
हमें घर-दारकी आशा, न कुछभी प्रेम इईश्वरसे ।
तोड़कर गोत-धन-दारा, हमें कैसा कसावेगा ? ।।३।।
भरा सब देह शक्तीसे, नहीं कुछ लीनता तनमें ।
कहाँ वह दास तुकड्याका, निभावा फिर लगावेगा ? ।।४।।