किसने कैफ चढाई, अरे मन !
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में...)
किसने कैफ चढाई, अरे मन ! किसने कैफ चढाई है ? ।।टेक।। बार बार रोके नहिं जावे, अजब करामत ताई है ।
क्या साधू और क्या पैगंबर, सबमें भूल बढाई है ।।१।।
जादू किसने डार दिया वह, जादूकी जदवाई है।
क्या तुझको किन भूत लगायो, अंत हमें नही पाई है ।।२।।
कभीतो राजा कभीतो रंका, कभी दोनों असवाई है।
कभी बेठे हाथी -अंबारी, कभी पावों भग जाई है ।।३।।
कभी समझे मैं दीन-अभागी, कभी साधु कहवाई है ।
तुकड्यादास बिना प्रभु देखे, तेरो भरम न जाई है ।।४।।