आशक बात नियारी साधो !
(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में. . . )
आशक बात नियारी साधो ! आशक बात नियारी रे ! ।।टेक।।
देखत जनको करत जपनको, बोले हर परकारी रे ! ।
बोलतपन बोले नहीं जावे, नाना बोल उबारी रे ! ।।१।।
हाँसत जिन बोलनको दुनिया, वह बोला उपकारी रे ! ।
भजन करत गालीसम बोले, ग्वाही संत पुकारी रे ! ।।२।।
जो करसे धरने नहीं पावे, क्या कहना करतारी रे ! ।
चालत चाल चले तालनमें, रूप - स्वरूप सँभारी रे ! ।।३।।
कर्म-अकर्म पाप और पूना, इनकी फाँस कटारी रे ! ।
तुकड्या बालक नहिं समझे गुज, भीतर कहत सुनारी रे ।।५।।