क्या हम तीरथ पायें भाई !

(तर्ज : अपने आतम के चिन्तन में . .. )
क्या हम तीरथ पायें भाई ! क्या हम तीरथ पायें जी ? ।।टेक।।
नहीं कुछ प्रेम -भजनभी कीन्हा, पैसा खोकर आये जी।
आशा-मनशा साथ हमारे, खूब रातदिन    खाये   जी ।।१।।
अंधेको नहीं कौडी दीन्ही, पंडा-पेट भराये जी।
जहाँ देखा वहाँ मानसमाना, नहीं अपमान समाये जी ।।२।।
साधुसंतका व्रत नहीं पाले, विषयों में ललचाये जी।
गंगा - स्नानादिक सब छोडे, कूआँ जाकर न्हाये   जी ।।३।।
नहीं कुछ लीन कहाँपर ठहुरे, नहीं मुंडी ढुलवाये जी।
तुकड्यादास कहे सब बिरथा, खाली देह गमाये   जी ।।४।।