काउ न पावत पार । साधो तेरा !

(तर्ज : ऐसे दिवानेको देखा भैया...)
काउ न पावत पार । साधो तेरा ! काउ न पावत पार ।।टेक।।  
सात सुंदर आडे तेरी, बीच पडे घन मार ।
तेरा तू दुसरा नहीं कोई, कौन निरख बलदार ? ।।१।।
छ: पाँचोकी चौकी बीचमों, अटके राज पुजार ।
पीर पड़े  पैगंबर लटके,   नहीं    देखे    दरबार ।।२।।
पंच तत्वका बंगला तेरा, निर्गुन दीप उजार ।
निर्गुण होवे सोही लहेगा, नहीं तो अटके यार ! ।।३।।
उस बंगलेमें तेरा ठाना, नहीं किसकाभी गुजार ।
जिधर-उधरमें तूहि भरा   है,    दूई     पहरेदार ।।४।।
तुकड्यादास खासकर बोले, कर करूणा दिलदार ।
तू सरदार सभीका प्यारा, दीजो   मोहे   सहार ।।५।।