कर अपनी पहिचान। साधो भाई !
(तर्ज : ऐसे दिवानेको देखा भैया...)
कर अपनी पहिचान। साधो भाई ! कर अपनी पहिचान ।।टेक।।
मायारूप एक झाड लगाया, उलटा उसका मान ।
नीचे पाती ऊपर मूली, सदा रहे गहिरान ।।१।।
उसके अंदर अमीया टपके, बूँद पडे असमान l
उस बूँदियाको चाख जरासा, टूटे जन्म- तुफान ।।२।।
झुर-झुर पवना शब्द पुकारे, कर उसकी अजमान ।
नहीं कोई जाप जपाया भाई ! अजपाजाप समान ।।३।।
उलटी अंदर पलटी रीती, नहीं सूरज औ चाँद ।
चाँद सूरज बिन गिरे उजाला, तेज पड़े असमान ।।४।।
उस मूलीमें प्रगटे ज्योती, नहीं कुछ रंग - रंगान ।
तुकड्यादास गुरुघर बोले, मगन रहो दिलम्यान ।।५।।