आतमज्योत निराली भाई !

(तर्ज : नारायण जिनके हिरदेमें ...)
आतमज्योत निराली भाई ! साँई बन तब पाती है रे ! ।।टेक।।
मूल द्वारसे प्रगटे   ज्योती । ब्रम्हरंध्रतक  जाती   है   रे ! ।।१।।
रातदिना कबहूँ नहीं सोवे । झिलमिल रंग सुहाती है रे ! ।।२।।
नाम अनेक दिये ज्योतीको । कहीं ब्रह्म समझाती है रे ! ।।३।।
कहे तुकड्या बिन सद्गुरू-किरपा । कबहूँ नजर न आती है रे ! ।।४।।