उलटकर देखले उसको
(तर्ज : नकलमें फँस गयी दुनिया... )
उलटकर देखले उसको, न घुम सागर - पहाडों में ।
बैठ एकान्त में जाकर, ध्यान धर पलक भ्रुकुटी में ।।टेक।।
हुआ है सद्गुरु पैदा, सभी दुनिया तरानेको ।
जलाकर कर्म के बन्धन, बिछा जा उसके चरणों में ।।१।।
भरा है राम घट-घटमें, न दिखता वरद-हस्त बिना ।
रात-दिन कर स्मरण उसका, तैर जा भव - समुंदर में ।।२।।
नही तो गोता खावेगा, अगर ना शरण जावेगा ।
कहे तुकड्या न पावेगा, वह डुलना निज - आनंदो में ।।३।।