एक समय में विधिसुत नारद आया सभामें भोले के
(तर्ज: सच्चे सेवक बनेंगे... )
एक समय में विधिसुत नारद आया सभामें भोले के ।
बहुत भक्त हैं भोले ! तेरे, ऐसा भक्त मुझे न दिखे ।।टेक।।
उदार गम्भिर श्रियालराजा, मनोपूर्ति करनेवाला ।
जो माँगे सो भोजन देता, चिलिया उसका है बाला ।।
अन्नदान तो मंडा उसीने, सहस्त्रवर्ष होंगे ऐसे ।
अकस्मात देता है लाकर, पूर्ण भक्ति है जी तुमसे ।।
सुनके नारद-वचन भोलाजी जोग पकंडकर गये वहाँ ।
दुष्ट शब्दही बोल वहाँपे तरह -तरहसे उसे कहा ।।
धर्मात्मा तू बहोत है रे ! दे अच्छा भोजन मुझको ।
चिलिया का वह माँस पकाकर, ला दे अबही खानेको ।।
पकड चोर लावेगा तू तो वह हम नहीं रे ! खानेके ।
बहुत भक्त है०।।१।।
सुनके राजा क्या बोले जी ! देता हूँ मैं बालक को ।
लाके माँस पकाकर धडका, सीस रखा अपने घरको ।।
बोले शंकर सीस कंडाओ, गायन करके जी ! दिलसे ।
सीस कुटोगे जब खायेंगे, क्यों यह बैमानी हमसे ? ।।
सभी माँस ला रखा सामने, फिरभी क्रोध करे शंकर ।
बोले जोगी नहि खानेके हम निपुत्रिकोंके घरपर ।।
सुनके माता गहिवर करके बोले - शंकर ! यह क्या है ?
सत्त्व जायगा मेरा अब तो, जोगी अन्न नहि खाता है ।।
सुनके प्रार्थथा भोलाजी की, खूश होनेकी हुई लहर ।
बोले जोगी - क्या मँगते हो ? ला देता हैं इसी प्रहर ।।
खूश भये वह उत्तर सुनके शंकरके दिल-अंदरके ।
बहुत भक्त है०।।२।।
रानी चांगुणा यहि वर माँगे - हो जाये हम सपूत के ।
बोले पुकारो चिलिया बालको बाल डटा वहाँपे आके ।।
पकड़ लिया भोलाने उसको, रुप दिखाया अपना फिर ।
सिंहासनपर थापे चिलिया, ऊड चले वहाँसे जी ! अधर ।।
कान्तिनगर में मौज न माये, खूश भये सब जन वहाँके ।
आनंद चला घर-घर कहते हर हर शंकर गुण गाके ।।
कहता तुकड्यादास निरन्तर, अजब भक्त है मालिकके।
बहुत भक्त है०।।३।।