क्या बोलूँ मैं बात ? अभी तो

(तर्ज-सच्चे सेवक बनेंगे... )
क्या बोलूँ मैं बात ? अभी तो नही भरोसा इस तनका !
आया वैसा गया जगतमें, अजब खेल है रे ! जमका ।।टेक।।
कहाँ की माता? पिता कहाँका? कहाँके बन्धु-स्त्री -सुनरे !
सब पैसेके जम हैं प्यारे ! साथ न आवे कुछ तेरे ।।
इस फन्देमें अन्तकालतक रामनाम कब गावेगा ?
मेरा - मेरा करते-करते, काल पकड ले जावेगा ।।
जग सपनेकी माया समझ ले, स्थीर नही है, सुन नीका ।
देख जरासा उलट-पलटमों, स्वरुप क्या है श्रीहरिका ।।
भजले अब तो राम, नाम-गुण, करो ध्यान परमातमका ।
                              आया वैसा गया०।।१।।
दीनानाथ सृष्टिका पालक, देख भरा है हृदयोंमे ।
छोडके उसको बनबन घूमें, क्यों जाता है पहाडोंमे ?
चौरासीके फेरे खाकर, फिर इस मरतन में आया ।
बडा भाग्य है उस नर का रे ! जिसे खुदाने प्रेम दिया ।।
घडिपल तेरा नहि आनेका, कर ले कुछ इसही म्याने ।
गयी उमर फिर पछतावेगा, नीच योनि में क्‍या जाने ?
ऐसा दुख होना जो तुझको, कर चिन्तन तू विषयनका ।
                               आया वैसा गया०।।२।।
श्वान-सुकर की नीच योनियाँ, नही तुझे वह मानेंगी ।
नही गती उत्तम वहाँपे रे ! तेरी दुर्गत ठानेंगी।।
आना-जाना, मरना धरना, बहुत दुःख औ कष्ट हुये ।
अब तो समझ धर दिलके अन्दर, मैने क्या क्या पाप किये ?
तुझे विषय ये लगे रे ! उत्तम, जान नरक की है कुंण्डी ।
भजले भजले प्यारे ! ईश्वर, काम-क्रोध की धर मुण्डी ।।
नहि उपकार मानता है तू, यह माया का है झोंका।
                            आया वैसा गया०।।३।।
द्रव्य मिलेगा करके सेवा करता है रे ! सन्तोंकी ।
काम होय जब देता गलफट, क्या जाने वह मानुजकी ?
देता है जो पैसे तुझको, सेवा करता है उसकी ।
किया है पैदा जिस मालिक ने, याद नहीं है क्यों तिसकी ?
म्लेंच्छ-हिन्दुओ ! सुनो बात यह, जानो मालिक ईश्वर तुम ।
उसबिन नाही पालनकर्ता,जानो मानों उसका हुकुम ।।
जिस सेवामें राम ना मिले, कौन बडप्पन उस धनका ?
                              आया वेसा गया०।।४।।