आज देखो नंदलाल, साँवरो बिहारी
(तर्ज : जागिये रघुनाथ कुँवर.... )
आज देखो नंदलाल, साँवरो बिहारी ।
मोरमुकूट चमकत हे, कुंडल - छबि न्यारी ।।टेक।।
जमुनाके आसपास, गौएँ निशिदिन चरात ।
खेले नित ग्वाल साथ, मोहे मन-हारी ।।१।।
रंग - रंगके फुलार, पहिनाये देखो हार ।
तिरछी कर नैन कटी पीतांबर - धारी ।।२।।
नाचत कई गोपि गोप, लीला चाहे अमूप ।
बंसरिकी टेर सुनत, गुंग होत सारी ।।३।।
कइ नरेश और ईश, ब्रह्मा नारद महेश ।
देखत ही चकित होत, अंत ना निहारी ।।४।।
जो सबका सकलधाम, खेलनको करत काम ।
कहे तुकड्या स्मरत नाम, दुःखको निवारी ।।५।।