क्या कहूँ कृपालनाथ ! कर्मकी बिमारी

(तर्ज : जागिये रघुनाथ कुँवर...)
क्या कहूँ कृपालनाथ ! कर्मकी बिमारी ।
भूला यह जीव, याद तोर ही बिसारी ।।टेक।।
आठों जाम ढूँढ भौंर, पलभी नहि धरत धीर ।
रामनामको बधीर, लाज छोड़ि सारी ।।१।।
झूठोंपर करत प्रेम, छोडे सब नीति - नेम ।
सुखको कहे हाम हाम, भूलके मुरारी ।।२।।
संत-संग कहि न पात, भटके वह काम साथ ।
भूल्यो सब जात पात, मर्कट चित धारी ।।३।।
कौन गती होइ मोर, कब छूटे यह अघोर ?।
अंतकाल चोर पोर,   लूटे    बनवारी ! ।।४।।
कहता सब हाल हाल, तुम्हरे पगमों दयाल ! ।
तुकड्याकी झूठ माल, तोडके निकारी ।।५।।