क्यों न पार पावेगा, जो नाथकी

(तर्ज : जिंदगी सुधार-बंदे ...)
क्यों न पार पावेगा, जो नाथकी सहाई हो ? ।।टेक।।
शिला अहिल्या उध्दारे,कोलिको ऋषी कर डारे ।
असुर बिभीषण को तारे, भक्त जो कहाई हो ।।१।।
धृवको सहारा दीन्हा, नाम जो उसीका लीन्हा ।
द्रोपदिकी लाज चीन्हा, चीरसे     नहाई   हो ।।२।।
गजने नाम उसका पाई, जलमें डुबा खींचे साँई ।
उसीका जो होवे भाई ! सो नहीं बहाई   हो ।।३।।
आजतक न ऐसा कोई, नाम लेके भूला होई ।
तुकड्या गुणोंको गाई, लीनसे  रहाई     हो ।।४।।