इक सद्गुरु चरण बिना फिर किसकी आस करूँ भाई !

(तर्ज : सदा रहो अलमस्त .....)
इक सद्गुरु चरण बिना फिर किसकी आस करूँ भाई ! ।।टेक।।
उनसे कौन बड़ा दुनियामें, मेरी नजर नाही ।
संत महंत ऋषी मुनियोंने, उसिके गुण गाई ।।१।।
देव धर्म सब उसके बांधे, काम करे साँई ।
जो जग-पालक सब दुनियाका, उसने बतलाई ।।२।।
पतीत-पावन सद्गुरु मेरा, क्या कहूँ चतुराई ।
आप समान जगतको जाने, निज-रूप को पाई ।।३।।
शास्त्र पुराण न कुछ जाने हम, मन गुरू-पद ध्याई । 
तुकड्यादास कहे गुरु-पदसे, पार उत्तर जाई ।।४।।