नर नारायण बनना बे !

(तर्ज : सदा रहो अलमस्त ...)
नर नारायण बनना बे ! एक सहज बात है भाई ।।टेक।।
आजहिसे भूला उसको, जिससे नारायण होगा ।
मृगजलमें फसके बैठा है, करके    फेरा    भोगा ।।१।।
मनका मूल जायकर देखो, है कौन ठिकान उसीका ।
मनके पार देखकर पलमें, हो जा वहि रूप बाका ।।२।।
छोड़ सभी खटपट करनेकी, नैन उलट कर जाना ।
साक्षी होकर इस इंद्रियका, समझो सारा सपना ।।३।।
नित्यरूप सब तनमें झलके, ख्याल करो पल घटमें ।
कुफर कफर को मारो जूते, दिखे निरंजन तटमें ।।४।।
जहाँपे रंग-रूप नहिं पावे, अलक्ष बन मस्ताना ।
कहता तुकड्या क्या कहना अब, छोडो ऊपर-बाना ।।५।।