क्या मेरे किस्मत टूट पडे है

(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे... )
क्या मेरे किस्मत टूट पडे है, या मेरा तकदिर घुमा रहा है ।।टेक।।
न हमने देखा कभीभी तीरथ, न हमने पूजी कभीभी मूरत ।
न हमने देखी खुदाकी सूरत, बेहाल दिलपर रमा रहा है ।।१।।
न साथ लीनी किसीकी संगत, कभू न बैठे किसीकी पंगत ।
हमेशा खाना पीना और सोना, यह ख्याल मनमें जमा रहा है ।।२।।
कभू न कीना धरम -करमको, कभू न राखा किसी शरमको ।
बढ़ा रहा हूँ खुदी भरमको, औ दुर्जनोंसे नमा रहा है ।।३।।
कहाँ लगेगा हमें ठिकाना, हे यार! किसकी गलीमें जाना ?
वह दास तुकड्या बना दिवाना, गुरुचरणको कमा रहा है ।।४।।