अर्ज है मेरी तुम्हें, दिलका कपट खोलो जरा

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
अर्ज है मेरी तुम्हें, दिलका कपट खोलो जरा ।।टेक।।
क्या ये बंधन ले लिये, जगमें पलट आजानेके ।
हो अलग सबसे अभी, फिर देखलो तनमें हिरा ।।१।।
कबतलक यह घूमना, जगकी सफर आधिनमें ।
जानलो अपना स्वरुप, जब नर तरा जीता -मरा ।।२।।
छोडदो यह कामना दिलकी, दुजा कोई नहीं।
क्या मरे मरते रहें, सब   एकही    जगमें    भरा ।।३।।
साधना दिलमें धरो, पूरी नहीं होती कभी ।
कहत तुकड्या सद्गुरुके, चरणका धर    आसरा ।।४।।