और तो सम्हलें सभी, पर वह सम्हलता आरहा

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
और तो सम्हलें सभी, पर वह सम्हलता आरहा।
वक्त में हुशियार होकर, नाम तेरा गा रहा ।।टेक।।
वक्तही होती कठिन, इस कामके जंजालकी ।
एक पलको जीत ले, सोही परमपद पारहा ।।१।।
लाख पल सब फोल है, पर एक पल अनमोल है ।
चेतता जागा भया, हकको नहीं गमवा रहा ।।२।।
उर्वशीके संगमें, पलको सम्हाला था जिने ।
सोहि तो कारण हुआ, गीता हमें सुनवा रहा ।।३।।
और तो तीरे सभी, जल-बूंद ना जब थाल में ।
पर वही तीरा गड़ी, भर लाटमें तिर जा रहा ।।४।।
कहत तुकड्या नामका-बाजार होता हर जगह ।
पर वही प्रभु गा रहा, एक अंतका पल पा रहा ।।५।।