अहो गुरु ! काल बिकट आयो है

(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल कामी... )
अहो गुरु ! काल बिकट आयो है, सब जग भ्रम छायो है ।।टेक।।
कहँ तो बिकत मोतिसम फूगा, बाहर-रँग भायो है ।
आप मरे औरनको मारे, कोउ न सुख पायो है ।।१।।
सब अपनी अपनी बतलावे, दौरत भ्रम खायो है ।
तू मेरा मैं मेरा समझे, काम - कपट   न्हायो  है ।।२।।
कबहू न नेम-धरमको पाले, मतलब गुण गायो है ।
दुर्लभ नाम तुम्हारो मुखमें, सब रँग रँग भायो है ।।३।।
क्या कहिये अब न बने कहते, जाल निकट आयो है ।
तुकड्यादास कहे किरपा कर, सब दुख टल जायो है ।।४।।

                                         (--- हिरिव्दार)