किस्मतसे राम मिले जिसको
(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था... )
किस्मतसे राम मिले जिसको, उसने ये तीन जगह पायी ।।टेक।।
पहले तो धन सुत दार गया, अरु शाल-दुशाला छूट पड़ा ।
सब मंजिल हाथी घोडोंसे, नहिं पास रहा साधन कोई ।।१।।
दूजेसे जग अपमान हुआ, अरु आदर तो सब जाय भगा ।
नहिं कीमत जात-बिरादरमें, साथी न रहा कुछ समझाई ।।२।।
तीजेसे आपद तन भोगी, दिन - रात रहे जैसा रोगी ।
नैनोंसे सूख नहीं देखा, सब उमरी दुखमें जा खोई ।।३।।
इन तीनोंसे कंगाल हुआ, पर याद उसीकी करता था ।
बिन नाम प्रभूके झूठ सभी, यह भाव हमेशा मनमाँही ।।४।।
ये तीन जगह जिसको न मिली, उसको न कभी दीदार हुआ ।
कइ जन्म-जरा भरते भरते, तुकड्याको यह गुरुपद पाई ।।५।।