क्यों दोस्त ! कहाँपर जाता है
(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
क्यों दोस्त ! कहाँपर जाता है, यह छोड वतन सारा मंजिल ।।टेक।।
क्या सुंदर महल बनाया था, रहनेका मजा कहने काबिल ।
क्या काँच-बनावट कीनी थी, जिसमें न रहा कछभी हासिल ।। १।।
क्या गहरे बाग बनाये थे, जिसमें सब रोशन छाये थे ।
एकदम सब बतियाँ बूझगयी, कुछभी न रही जिनमें झिलमिल ।।२।।
क्या घोड़ेस्वार जमाये थे, इक पलमें दुनिया घूम सके ।
सबकी सोहबतको छोड दिया, हमसे क्यों करता है बेदिल ? ।।३।।
इक ढबकी बारादारी थी, जिसमें बीजे गुलजारी थी ।
अबतो सब सुन्न बनी कुटिया, क्यों बदलगया तेरा हकदिल ।।४।।
कुछ तोभी याद करे हमरी, कइ रोजोंसे जिगराना था ।
क्यों एकहि पल नाराज हुआ ? ले जाय रहा डेरा बोझिल ।।५।।
धनदार पसारा भारी था, जिसका न कोइ अजमास कहे ।
वह तुकड्यादास कहे जाता, तो इकदिन हमसे वहाँपर मिल ।।६।।