कोइ आज मरे कोइ काल मरे

(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
कोइ आज मरे कोइ काल मरे, हमकोभी इक दिन मरना है । कोइ राम भजे कोइ काम सजे हमको दोनोंसे डरना है ।।टेक।।
कोइ पाप करे कोई पूण्य करे, हमको पुण -पाप बिसरना है ।
कोइ धर्म धरे कोइ कर्म करे, हमको उनमें न बिसरना है ।।१।।
धन-धाम तुम्हें दीन्हा भगवन्‌, खुब माल खजाना उभरना है ।
यह लंगोट भली सिर राख डली, कभी बाँधि खुली दिन हरना है ।।२।।
कोउ देव पुजे कोउ ध्यान धरे, हमको वह ध्यान बिसरना है ।
मैं राम बनूं मैं धाम बनूं  यह मे  - तू  सार बिसरना   है ।।३।।
तुम भोग भरो जमघरमें मरो, नहिं तो सुधरो यह कहना है ।
तुकड्या तुकडा तुकडेमें मगम, तुकडेसे पूरा करना है ।।४।।

                                          (--- अजमेर)