आंनद मानाओ हरदमपे

(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
आंनद मानाओ हरदमपे, आनंद तुम्हारा नूर सदा ।
जिस हालतमें राखे भगवन्, अलमस्त रहो भरपूर सदा ।।टेक।।
यह दूर भगाओ आलसको, नित संग सुधार निकाल सको ।
असलोंपे काम न पालसको, राखो दिल सेवा-चूर सदा ।।१।।
ये त्यागो आशा मनशाको, दृढनिश्चय राममरण चाखो ।
रमवाकर प्रेम करो जीको, हर वक्त खडेहि हुजूर सदा ।।२।।
सब एकहि जीसे जीते है, कर्मोसे दृश्य उचीते है ।
जब भेद मिटे बुध्दीते है, नहिं कोऊ नजीक न दूर सदा ।।३।।
यह झूठा जगत-तमासा है, सब भ्राँतीसे परकासा है ।
पररूप सदा अविनासा है, यह जान बनो मशहूर सदा ।।४।।
जैसी जिसको परतीती है, उसकेपर वैसी बीती है ।
तुकड्या कहे राखो नीती है, काटो छल द्रोह कसूर सदा ।।५।।