इतनाभि करो जितनाशि करो

(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
इतनाभि करो जितनाशि करो, उतनेसे आगे बाकी है ।।टेक।।
कहिं धाम करो, विश्राम करो, खूब नाम करो, बदनाम करो ।
ब्रत मान करो, मुख गान करो, सब मनकी हाकाहाकी है ।।१।।
जप ध्यान करो, तप दान करो, कुछ पान करो, बिन पान करो।
कहिं ऋण करो, या पूण करो, सब अँधियारेकी झाँकी है ।।२।।
खुब ज्ञान सिखो, कुछ साध रखो, जो यह परखो या वह परखो ।
जब परखा-परखी बाकी है, तो जानो झूठी फाँकी है ।।३।।
अजि ! योग करो या जोग धरो, या वहँ बिचरो, अस्मान परो ।
बल सिद्ध रखो, दिलमें हरखो, आने-जानेकी धाकी है ।।४।।
जब करना क्या अरु धरना क्या, यह कहना क्या नहिं कहना क्या ।
तुकड्या कहे जाय मिलो उसमें, तब टूट पडे  सब हाकी है ।।५।।