कलजुगमें सारी पापकी बडाई है
(तर्ज : तज दियो प्राण, काया कैसी रोई... )
कलजुगमें सारी पापकी बडाई है ।।टेक।।
ब्राम्हण लोग कर्मको भूले, भ्रष्ठ भये जगमाँही है ।
पूजा - पाठ करनको छोड़ा ।
धनोंके लिये सारी, लाजभी गमाई है ।।१।।
क्षत्रीके घर धूम भई, वेश्याकी नाटकशाही है ।
बहेन - भाई कछू न जाने ।
आपसोंमे जूते-मारी, नशामें गमाई है ।।२।।
दया धरम तो कोउ न जाने, जूआ दारू छाई है ।
साधू-संतको कोड न पूछे ।
घरघर ढूंढे सारे, पेटके सिपाई हैे ।।३।।
शूदर लोग भक्ती के प्यारे, जनुआ डारू चलार्ई हे ।
देवल के घर भीख लगी तो ।
कुतियासे राखे अपने, अंगकी नहाई है ।।४।।
नारीके सँग भूल गये सब, नाचे-आशक भाई है ।
तुकड्यादास कहें नहिं यह तो ।
संतका कहा ही बोले, झूठकी खुबाई है ।।५।।