उस यारके दीदारसे, अरमाँ निकल गया
(तर्ज : तेरे दिदार के लिये बंदा हैरान है .... )
उस यारके दीदारसे, अरमाँ निकल गया ।
वह ख्वाबका परदा नजरसे दूर चल गया ।।टेक।।
आजतक फँसे हुए पड़ते थे मौतमें ।
जपनेसे गुरु - नामको वह दिन बदल गया ।।१।।
कुछभी नहीं करना रहा, दुनियाके भोगका ।
ज्ञानकी बदलीसे वह, मृगजलभी ढल गया ।।२।।
हमको नहीं आशा कोई कुछ स्वर्गलोककी ।
आशकोंके नूरमें चष्मा बहल गया ।।३।।
नींदके परदेमें तो, कुछभी न था पता ।
वलियोंकी राहसे मेरा यह, दिल बिचल गया ।।४।।
क्या और है कोई मेरे, निजरूपसे जुदा ? ।
दिलदार यारके कहे, तुकड्या मिसल गया ।।५।।
(-- जयपूर)