क्या मजा तुम्हें बतलाना । वह जिसका उसने पानाजी

(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! ...)
क्या मजा तुम्हें बतलाना । वह जिसका उसने पानाजी ।।टेक।।
पलक खोल जब पडे उजाला । जगमग ज्योत जगाना ।
टूटे ताल खुले दरवाजा,    अनुभवबीच     समानाजी ।।१।।
त्रिकुट घाट एक बाग लगाया, गहरे फुलको पाना ।
रंग रूप नहिं फुलकों बाँके, कभू कहीं नहिं जानाजी ।।२।।
सुखसागरसे बरसी झडियाँ, जैसा बादल छाना ।
टपके बूंद समुंदरमाँही, फेर        करे     मनमानाजी ।।३।।
मस्त सदा चढ़गयी नशाही, क्या सुखको अजमाना ? ।
तुकड्यादास मगन हो बोले, सद्गुरू नाम   रिझानाजी ।।४।।