एक बडा अचंभा पाया, मुर्देने मुर्दा खाया जी
(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! .... )
एक बडा अचंभा पाया, मुर्देने मुर्दा खाया जी ।।टेक।।
उस मुर्देको सीस नहीं, बिन सीसहि बात कहाया ।
बिना पंख असमान उडा है, दिल चाहे सो खाया जी ।।१।।
बिना पैरसे नाच नचा है, आपहि मौज उडाया ।
बिना जबाँसे बाचत पोथी, बिना कान सुन पाया जी ।।२।।
बिना नुरसे सुंदर साजे, बिन जल प्यास मिटाया ।
तुकड्यादास कहे वह मुर्दा, बिरलेने अजमाया जी ।।३।।